शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

फिर से ग्रहों के बदलाव का व उलटफेरी का दौर शुरू होगा, और फिर से बदलेंगीं चालें , राहें मंजिलें



फिर से ग्रहों के बदलाव का व उलटफेरी का दौर शुरू होगा, और फिर से बदलेंगीं चालें , राहें मंजिलें
गीत वह सुनिये या गाईये , जिसका असर ऊपर आसमां से नीचे पाताल तलक हो , शादी विवाह की बुनियाद है प्यार व विश्वास, और प्यार व विश्वास की बुनियाद है मोहब्बत , मोहब्बत करने के लिये दिमाग की नहीं अलबत्ता दिल की बहुत जरूरत होती है
नरेन्द्र सिंह तोमर ‘’आनन्द’’

आज के दोनों ही विषय एक दूसरे से जुदा और अलहदा हैं , मगर दोनों ही आज के दौर की निहायत जरूरत हैं । चलिये दोनों ही विषयों को आज उठाते हैं ।
ग्रहों का फेरबदल और बदलाव , साथ ही बदलेंगीं तमाम चालें
आसमानी ग्रहों के तमाम परिवर्तन हालांकि बड़े परिवर्तन तो जनवरी के महीने में और मार्च 2016 के महीने में होंगें , लेकिन हल्के व छोटे परिवर्तनों का दौर अभी नवंबर के 2015 के ही दरम्यां शुरू हो जायेगा ।
वर्तमान में ग्रहों की विचित्र स्थति यह है कि मंगल , शुक्र व राहू तीनों एक साथ एक ही राशी में चल रहे हैं यानि कन्या राशी में ।
ग्रहों की यह सूरत करीब 9 प्रकार के योगों को जन्म देती है, यह निर्भर करता है कि किसी मात्रा या अंश या ताकत कितनी है और कौन कितना बलवान या कमजोर चल रहा है ।
कीचड़ योग दरअसल यह मूल योग है, आपकी जन्मकुंडली में यदि यह तीनों साथ आ जायें तो जिस जगह बैठेंगें उस जगह को कीचड़ से भर देंगें , अब यह कीचड़ कैसी होगी , गंदी बदबूदार, काली, या कितनी सूखी , कितनी बदबू या कितनी काली या बहुत ज्यादा भारी या बहुत ज्यादा हल्की फुल्की यह निर्भर करता है आपकी जन्मकुंडली में एक साथ बैठ जाने पर , किस भाव में कितना बलवान या कमजोर होकर कोई ग्रह बैठा है ।
खैर यह योग अभी 30 नवम्बर से टूट जायेगा , चूंकि राहू इस समय कमजोर हालत में होकर महज 3 अंश पर हैं इसलिये सूरत ज्यादा घातक या नुकसानदेह नहीं है , मगर नाली तो नाली है , काली है, कीचड़ है, कन्या राशी में होकर इस समय बह रही है या गुजर रही है ।
शुक्र 30 नवंबर को राशी बदलकर तुला में यानि खुद के घर अपनी ही राशी में प्रवेश करेंगें । जबकि मंगल दिसम्बर में 23 दिसम्बर को राशी बदलेंगें और तुला राशी में प्रविष्ट होंगें । यानि कि 30 नवंबर के बाद कीचड़ पूरी तरह से सूख जायेगा , और महज काला सूखा कीचड़ या काली मिट्टी पड़ी रह जायेगी ।
कुछ वक्त से सर्प दिखाई देने के सपने जिन लोगों को आ रहे होंगें , वह या तो अब बंद हो जायेंगें या सिर्फ मरे हुये सर्प मिट्टी में गड़े हुये या उस पर छोटे मोटे बच्चा रूप में रेंगते चलते नजर आयेंगें जिन्हें महज तिनकों से मार कर मिट्टी में दबा देने का दृश्य नजर आने लगेगा । दिसंबर में ही सूर्य के उत्तरायण होते ही सर्प स्वप्न एकदम से आने बंद हो जायेंगें और अब तक जो जो भी देखा होगा वह जनवरी के बाद फरवरी 2016 से हकीकत में तब्दील होना शुरू हो जायेगा । 6 दिसंबर से बुध का धनु राशी में प्रवेश होगा , वहीं सूर्य 16 दिसंबर से धनु राशी में प्रवेश करेंगें ।
ग्रहों की बड़ी उलटफेर जनवरी में 8 जनवरी 2016 से शुरू होगी , गुरू सिंहस्थ रहकर तकरीबन राशी बदलते बदलते एकदम से मृतप्राय: से होकर  ही वक्री हो जायेंगें । और पुन: सिंह राशी में ही टिके रहेंगें , गुरू की यह वक्र गति वह भी उस वक्त जब उन्हें राशी बदलकर कन्या राशी में जाना है , एकदम से उल्टा वापस सिंह राशी में लौटना और वक्री चाल के तमाम अर्थ व महत्व होंगें ।
दूसरा बड़ा परिवर्तन 29 जनवरी 2016 से होगा जब राहू और केतु राशी बदलेंगें । राहू का प्रवेश सिंह राशी में होगा और केतु का प्रवेश कुम्भ राशी में होगा ।
तीसरा बड़ा ग्रह परिवर्तन मार्च 2016 के महीन में उस वक्त होगा जब शनि 25 मार्च 2016 को वक्री होंगें ( वर्तमान में शनि 13 नवंबर 15 से अस्त चल रहे है और 16 दिसंबर 15 तक अस्त रहकर 16 दिसंबंर को ही उदित होंगें ) उल्लेखनीय है कि 16 दिसंबर को ही सूर्य यानि शनि के पिता राशी बदलेंगें ।     
शादी की बुनियाद है प्यार व विश्वास , और प्यार व विश्वास की बुनियाद है मोहब्बत , मोहब्बत के लिये दिमाग नहीं दिल चाहिये
यह विषय सीधे सीधे हमारे पूर्ववर्ती आलेख मंत्र कुमंत्र , शब्द , स्वर व ध्वनि व कुदरत व कायनात से गुरती हर प्रकार की तरंग से जुड़ा हुआ या उसका ही एक अंग है ।
शादी विवाह या प्रेम पारस्परिक जुड़े हुये व सालग्नि‍क विषय हैं । जिन पर पृथक नजरिया पृथक्कीयकरण को , वियोग को या तलाक को या बन्य किसी विकट व अप्रिय स्थति को जन्म देता है ।
पृथक्करण, विरह , वियोग, तलाक या अन्य अप्रिय हालात के योग न केवल जन्मकुंडली में ह मौजूद रहते हैं अपितु उस वातावरण या हालातों को भी पैदा कर देते हैं जिनसे यह सब अप्रिय हालात आसानी से पैदा हो जायें ।
इन सबका असर आने वाली पीढ़ी या संतान पर भी मनोवैज्ञानिक रूप से या परिस्थतिजन्य होकर पड़ता है जिसके आने वाले दौर या आने वाले वक्त में परिणाम भीषण व भयंकर ही होते हैं । खैर फिलहाल चलिये सुनिये एक मधुर पुराना गीत ब्राडकास्ट करते हैं , उसे सुनिये , ऐसे ही मधुर गीत व संगीत मंत्र की श्रेणी में आते हैं , आजकल इस प्रकार के गीतों का आना व बनना बेशक बंद हो गया है और गीत संगीत युक्त मंत्र का स्थान शोरगुल , चीख चिल्लाहट, झल्लाहट व मानिसिक विकृतियुक्त या मानसिक विकृतियां पैदा करने वाले व सामाजिक संरचना को नष्ट भ्रष्ट करने वाले तथा कथि‍त गीत संगीत ने ले लिया है , मगर हमारी सलाह है कि न कभी इस प्रकार आसुरी व कुमंत्र युक्त गीत संगीत को सुनें और न ऐसी फिल्मों को ही देखें । वरना अंजाम तय है और परिवेश व हालात भी तदनुसार ही बन जायेंगें । फिलवक्त एक मंत्रमय मधुर गीत ब्राडकास्ट कर रहे हैं ..... यह आलेख श्रंखला जारी रहेगी .... क्रमश: अगले अंक में 

सोमवार, 29 जून 2015

तंत्र एवं मंत्र संबंधी उपयोगी जानकारी - नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''

तंत्र एवं मंत्र संबंधी उपयोगी जानकारी
- नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
मंत्र भेद - मंत्र मात्र के पॉंच प्रकार के भेद होते हैं
1. पिण्ड  2. कर्तरी 3. बीज  4. मन्त्र  5. माला मंत्र
मंत्र स्वरूप प्रकार एवं प्रयोग भेद -
1. नम: वाले मंत्र नपुंसक मंत्र कहे जाते हैं
2. फट् वाले मंत्र पुंंलिंग मंत्र कहे जाते हैं
3. स्वाहा वाले मंत्र स्त्री लिंग मंत्र कहे जाते हैं
स्वधा , वषट और वौषट तदनुसार क्रमित किये जाते हैं
हूँ फट या हुंकार तथा फटकार का मंत्र में एक साथ प्रयोग पगत्येक सामान्य तांत्रिक या साधक को नहीं करना चाहिये , फट मंत्र में साध्य देवता या देवी को फटकार लगायी जाती है , जबकि हूँ फट यानि हुंकार के साथ फटकार में बहुत बुरी तरह से डांट लताड़ व फटकार रहती है , सामान्य साधक या तांत्रिक जिसका तंत्र या मंत्र पर बहुत उच्च कोटि का नियंत्रण या बहुत उच्चतम कोटि की शक्ति या साधना या सिद्धि न हो वे फट मंत्रों का प्रयोग न करें , वरना विनाश या सर्वनाश सुनिश्च‍ित है ।
मंत्र का जप सप्तांग सहित करना चाहिये -
ऋष‍िश्छंदश्च बीजं च कीलकं शक्त‍िरेव च ।
अंगन्यासस्तथा ध्यानं मंत्रांगानां च सप्तकम ।।
वैदिक, पौराण‍िक, तांत्रिक, एवं सावर यह चार प्रकार के मंत्र जिसके सींग हैं, कादि , हादि सादि उपासना पद्धतियां जिसके तीन चरण पाद हैं, वैदिक , शैव, वैष्णव, दक्ष‍िण, वीर, वाम, कौल ये सात प्रकार के सात आचार ही जिसके सात हाथ हैं , जीवात्मा में प्रविष्ट यही तंत्र मंत्र है ।
सावर मंत्रों में सावधानी -
सावर मंत्र आसानी से और बहुत जल्दी असरकारक होते हैं , तथा सिद्ध भी शीघ्र होते हैं किंतु किंचित भी बिन्दुमात्र भी त्रुटिमात्र होने पर यह अति शीघ्र व तुरंत ही साधक का या उस प्रयोग करने वाले का या तांत्रिक का विनाश या सर्वनाश भी कर देते हैं ।  अत: सावर मंत्र जाप या प्रयोग में बहुत ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिये ।
किसी गृहस्थ के लिये या अन्य किसी तांत्रक के लिये वाम मार्गी पद्धति की साधना अति शीघ्र सिद्ध होने वाली व तुरंत फलदायी होती है किंतु तंत्र का विशेष नियम यह है कि , दक्ष‍िण मार्ग से यदि साधना कर रहे हों तो स्वयं की समर्पिता पतिव्रता पत्नी का प्रयोग करें , और यदि वाम मार्ग से साधना कर रहे हैं तो कुल नायिका का प्रयोग करें , गृहस्थ मनुष्य के लिये दक्ष‍िण मार्गी साधना सर्वोत्म है , और स्वयं की पत्नी का प्रयोग ही निर्दिष्ट है ।
अन्य प्रकार के प्रयोगों में श्री कुल एवं काली कुल दोनों ही कुल परंपराओं में यही विधान प्रावधान सम्यक है, किंतु कतिपय विशेष प्रयोगों में दासी का, या अन्य विशेष उल्लेख की गईं व वर्ण‍ित स्त्रीयों का ही प्रयोग किया जाना चाहिये ।
साधना में ''योगनी'' के रूप में और ''भैरवी'' के रूप में स्त्रीयों के प्रयोग किये जाने चाहिये , उच्च कोटि की बड़ी साधना पद्धतियों में रतात्सव पुरूष व स्त्री ( विपरीत रतात्सव सूरत में) केवल एक ही व्यक्त‍ि मंत्र जाप करता है  , जबकि अन्य उच्च कोटि की ही साधना पद्धतियों में दोनों को ही उसी स्थि‍ति में मंत्र जाप निरंतर करना होता है , किंतु इसकी अन्य सुस्थापित विधान व शर्तें हैं , तथा दोनों ही ऊर्ध्ववेत्ता एवं अंतिम मंत्र जाप तक स्थ‍िर रतात्सव एवं नि:स्ख्लि‍त रहने चाहिये , तदुपरांत नित्य या साधना अवधि पूरी होने तक रोजाना पूर्ण मंत्र जाप साधना उपरांत प्राप्त स्त्री रज व पुरूष वीर्य का मिश्रण वाम मार्ग में वर्ण‍ित विधि‍ एवं पद्धति द्वारा अनिवार्यत: उपयोग किया जाना चाहिये । अन्यथा साधना व्यर्थ व निष्फल जायेगी ।  दक्ष‍िणमार्ग में स्व पत्नी या स्व स्त्री या स्व पत्नीयों या स्व स्त्रीयों के संबंध में भी यही विधान तय है ।   बिना संपूर्ण विधान व प्रावधान जाने बगैर या उचित गुरू के मार्गदर्शन बगैर रतात्सव संबंधी साधना किसी को भी भूलकर नहीं करना चाहिये , क्योंकि इसमें अनेक क्रम , विध‍ि,  कलाओं व स्ववरूपों , धारण व ग्रहण करने योग्य या ग्राह्य अग्राह्य आदि अनेक उपचार उपासना के विविध सुनिश्च‍ित तरीके होते हैं , अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि या विनाश या सर्वनाश हो जाता है - नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''