शनिवार, 25 जून 2016

योगेश्वरी ( भाग -3) फिल्म

फिल्म योगेश्वरी भाग - 3 में प्रस्तुत है , श्री दुर्गा सप्तशती का पिछली फिल्म योगेश्वरी भाग - 2 का शेष , महाभारत के मैदान में श्री कृष्ण के आदेश पर अर्जुन द्वारा की गयी देवी योगेश्वरी की स्तुति , सनातन धर्म के प्राचीनतम ग्रंथ श्री महाभारत में संपूर्ण विश्व के महाभारत सम्राट भारत जनमेजय सिंह तोमर ( सर्प सत्र या सर्प यज्ञ करने वाले ) को वैशम्पायन जी द्वारा सुनाया गया देवी ''योगेश्वरी ''  का स्तोत्र (वेदव्यास जी द्वारा रचित व पद्यबद्ध किया गया का स्तोत्र) प्रस्तुत है फिल्म येगेश्वरी भाग - 3 
Presented By Devputra Films and Media Pvt. Ltd. with collaboration of Gwalior Times and National Noble Youth Academy
https://youtu.be/WKUlYAIkOHU
देवपुत्र फिल्म्स एण्ड मीडिया प्रायवेट लिमिटेड , ग्वालियर टाइम्स एवं नंशनल नोबल यूथ अकादमी के साथ , सहयोग व सौजन्य से प्रस्तुत करती है फिल्म योगेश्वरी भाग - 3
http://gwlmadhya.blogspot.in
http://gwaliortimes.wordpress.com
http://www.facebook.com/Devputrafilms/
https://www.facebook.com/groups/Jyotishtanta/
https://www.facebook.com/TomarRajvansh/
इस फिल्म को देखने के लिये डायरेक्ट यू ट्यूब लिंक ( निम्न लिंक पर क्ल‍िक करें व फिल्म को डायरेक्ट हमारे चैनल पर , चैनल पार्टनर यू टयूब पर देखें)

https://youtu.be/WKUlYAIkOHU

शनिवार, 11 जून 2016

स्त्री पुरूष सम्बन्ध व गुण मिलान , ऋणात्मक व धनात्मक ऊर्जायें एवं कुंडिल‍िनी का शक्त‍ि प्रवाह - नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''

स्त्री पुरूष सम्बन्ध व गुण मिलान , ऋणात्मक व धनात्मक ऊर्जायें एवं कुंडिल‍िनी का शक्त‍ि प्रवाह
- नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
मनुष्य मात्र में या प्राणी मात्र में जिनमें से उन्हें छोड़कर जो कि उभयलिंगी होते हैं जैसे केंचुआ, या अमीबा , पैरामीश‍ियम या अन्य , शेष बाकी सभी में मातृ शक्त‍ि और पितृ शक्त‍ि , तथा तीनों गुण सतो गुण , रजो गुण, तमो गुण मौजूद रहते हैं , प्रत्येक प्राणी मात्र में इन गुणों की यह मात्रा का अनुपात घटा या बढ़ा हुआ रहता है और यह भी कि यह सदैव घटता बढ़ता रहता है , जो हर मनुष्य के आचरण व व्यवहार का निर्धारण व नियंत्रण कर उसके व्यक्त‍ित्व व गुणों के साथ उसके प्रभा मंडल का निर्माण करता है , वैसे सभी प्राणी या सारे मनुष्य भौतिक देह आधार पर एक जैसे ही नजर आते हैं , लेकिन केवल इन गुणों के अनुपात घटते बढ़ने से उनके स्वभाव , आचरण, व्यवहार व कर्म निर्धारित होकर उनके स्वरूप व व्यक्त‍ित्व का निर्माण होता है ।
बेशक यही ध्रुव सत्य है कि जिस पुरूष में जिस अनुपात में पौरूषीय गुण शक्त‍ि तथा सत , रज या तम गुण की जितनी मात्रा होगी , उसके ठीक एकदम विपरीत कम या ज्यादा गुण शक्त‍ि वाली स्त्री स्वत: ही उसकी ओर आकर्ष‍ित व सम्मोहित होकर अनजाने ही उसकी चाहने वाली होगी , यह चाहना किसी भी रूप में या किसी भी हद तक हो सकता है । लोग इसे सभ्यतावश अनेक नाम दे देते हैं '' पसन्द'' करना से लेकर बहिन, पत्नी, मेहबूबा, प्रेमिका, या अन्य दीगर किसी प्रकार का अनजान या मित्रता मात्र का गहरा रिश्ता कुछ भी हो किन्तु उनमें स्वाभाविक परस्पर एक अंदरूनी प्रीति व लगाव एवं ख‍िंचाव बना रहेगा ।
मसलन उदाहरण के रूप में यह संभव है कि जिस पुरूष में पौरूषत्व ज्यादा हो , और इसके विपरीत किसी स्त्री में स्त्रीत्व ज्यादा हो तो उनमें स्वाभाविक ही सम्मोहन व आकर्षण हो जायेगा , इसी प्रकार स्त्रीत्व गुणों से संपन्न पुरूष के प्रति पुरूष गुण से संपन्न नारी के बीच स्वाभाविक सम्मोहन , आकर्षण व प्रीति होगी ।
अक्सर जहॉं समलिंगी सम्बन्ध या विवाह होते हैं , वहॉं इन्हीं गुणों व स्वरूपों का करिश्माई कमाल होता है , भगवान शंकर का अर्धनारीश्वर स्वरूप या श्री कृष्ण का या अर्जुन का स्त्रीवेश धारण करना इसे निरूपित व परिभाष‍ित कर इसकी विस्तृत व्याख्या करता है ।
एक नपुंसक लिंग या उभयलिंगी यदि कोई प्राणी शुरूआत में या जन्म से न हो लेकिन वह यदि कुंआरा रहने या ब्रह्मचर्य का व्रत धारण कर ले या समलिंगी सम्बन्ध कर ले या समलिंगीं विवाह कर ले तो , स्त्री पुरूष संबंधों से या तंत्र में भैरवी शक्त‍ि या भैरवी चक्र जागरण के बाद सहस्त्राधार तक कुंडिलिनी शक्त‍ि को ले जाकर '' ऊँ'' की प्राप्त‍ि का मार्ग पूरी तरह बदल जाता है और फिर ऐसे मनुष्य के अंदर स्वयं ही दोनों शक्त‍ियां यदि भैरव एवं भैरवी पैदा हो जायें तो ही वह साधना के अंतिम चक्र तक जाकर समाध‍ि अवस्था तक पहुँच पायेगा , अन्यथा विनष्ट होकर उसकी सारी शक्त‍ि ऋणात्मक होकर ऊर्ध्व गति प्रवाह के बजाय अधोगति प्रवाह में होने लगेगी और वह निम्नमनतर गति व ऋणात्मक होता जायेगा , आसुरी तत्व बढ़ते जायेंगें अंतत: अंतिम गति में उसका स्वरूप एवं अगली जन्म निम्न या क्षुद्र या किसी अन्य नीच योनि में होगा और उसे बेशक मनुष्य योनि में पुनर्जन्म लेना संभव नहीं होगा ।
स्त्री पुरूष चाहे वह दांपत्य जीवन में पति पत्नी हों , या प्रेमी प्रेमिका हों , मेहबूब व मेहबूबा हों या लिव इन रिलेशन में हों , उन्हें परस्पर ऊर्जायमान व तेजस्वी होने का अनुभव व अहसास यदि हो अर्थात सकारात्मक या धनात्मक ऊर्जा प्रवाह व समृद्धि , चेतना की परस्पर अनुभूति हो तो ही संबंध या रिश्ता जारी रखना चाहिये , अन्यथा इसके विपरीत यदि किसी भी प्रकार से पारस्परिक संबंधों से ऋणात्मकता या अधोगति या तनाव या चिन्ता या विकारग्रस्तता या खेद या ऋणत्मक ऊर्जा प्रवाह या समृद्धि व चेतना की हीनता या हृास या कमी अनुभव या महसूस हो तो , ऐसे रिश्ते या संबंध तुरंत समाप्त कर देने चाहिये और आगे और ज्यादा होने वाल अधोगति को जारी नहीं रखना चाहिये ।
जन्म कुण्डली मिलान में , वर व वधू की जन्म कुण्डली मिलान करना एक बहुत उत्तम व उचित व्यवस्था है , किन्तु यह पूरी तरह से एक गण‍ितीय व वैज्ञानिक विध‍ि व रीति है , कम ज्ञान वाले या अधूरे ज्ञान वाले या अगण‍ितीय या अवैज्ञाानिक ज्योतिषी से ऐसा जन्म कुण्डली विवाह मिलान नहीं कराना चाहिये । वरना सब कुछ उल्टा पुल्टा हो जायेगा ।
मसलन कुण्डी मिलान में कई गुणों का मिलान किया जाता है , जैसे वर्ण , योनि एवं नाड़ी आदि ..... इनके सबके अपने अपने अर्थ एवं महत्व हैं , कुल मिलाकर जितने गुण मिलान शास्त्रीय रीति से वर वधू के मिलान किये जाते हैं , एक उत्तम गण‍ितज्ञ व वैज्ञानिक ज्योतिषी उससे ज्यादा आगे जाकर अन्य और भी कई गुणों का मिलान कर एक सटीक व उत्तम विवाह मिलान कर सकता है या स्पष्टत: विवाह लिान को रिजेक्ट कर देगा । अत: देख भाल कर चालिये, यही में सबकी खैर , वरना चले थे मोहब्बत करने, पर हो गया उनसे वैर ..... ( विशेष कृपया उन लोगों से विशेष रूप से उनसे सवाधान रहें जो यह गारण्टी देते हैं कि प्रमिका का वशीकरण करा दूंगा , या आकर्षण करा दूंगा, खोया प्रेम पुन: वापस पायें , मनचाही संतान पायें वगैरह , आदमी की खुद की कोई गारण्टी नहीं होती कि आधे घण्टे के भीतर उसके खुद के साथ क्या होने वाला है , लिहाजा दूसरों को चैलेन्ज करके गारण्टी देने वाले खुद को खुदा कहने वाले या हनुमान जी का सिद्ध या किसी अवतार का सिद्ध बताने वाले ढोंगीं पाखण्डीयों से बच कर रहें , हो सकता है , कि आधे घण्टे में कुदरत या खुदा उन्हीं का कुछ और ही अंजाम लिख रही हो अत: अपना धन व समय एवं इज्जत बचा कर रखें , सोच समझ कर ही इसे खर्च करें ) हम नाम नहीं बताना चाहते , कुछ ज्योतषी व तंत्र के विशेषज्ञ हैं , ऐसे लोग भी हैं जो पूरे शहर भर में हमारे यहॉं सबकी जन्म कुण्डलियां बनाते हैं , कुण्डलियां मिलान करते हैं और पूजा पाठ हवन आदि तंत्र क्रियायें करते हैं , लेकिन खुद के लिये , अपने स्वयं के परिवार के लिये या किसी मोटे ग्राहक की कुंडली बनवाने या कुण्डली मिलान करवाने या किसी तंत्र क्रिया या हवन आदि , पूजा पाठ या अनुष्ठान के लिये वे हमारे पास आते हैं और हमसे यह सब करवाते हैं  , खैर यह उनका धंधा है , चलता भी खूब है , कमा भी खूब रहे हैं , चाहे कोई बर्बाद हो या आबाद हो , उन्हें बस अपने धंधे के चलने से काम .... खैर यह संसार है , इसी तरह चलता है   - नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''