सोमवार, 29 जून 2015

तंत्र एवं मंत्र संबंधी उपयोगी जानकारी - नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''

तंत्र एवं मंत्र संबंधी उपयोगी जानकारी
- नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
मंत्र भेद - मंत्र मात्र के पॉंच प्रकार के भेद होते हैं
1. पिण्ड  2. कर्तरी 3. बीज  4. मन्त्र  5. माला मंत्र
मंत्र स्वरूप प्रकार एवं प्रयोग भेद -
1. नम: वाले मंत्र नपुंसक मंत्र कहे जाते हैं
2. फट् वाले मंत्र पुंंलिंग मंत्र कहे जाते हैं
3. स्वाहा वाले मंत्र स्त्री लिंग मंत्र कहे जाते हैं
स्वधा , वषट और वौषट तदनुसार क्रमित किये जाते हैं
हूँ फट या हुंकार तथा फटकार का मंत्र में एक साथ प्रयोग पगत्येक सामान्य तांत्रिक या साधक को नहीं करना चाहिये , फट मंत्र में साध्य देवता या देवी को फटकार लगायी जाती है , जबकि हूँ फट यानि हुंकार के साथ फटकार में बहुत बुरी तरह से डांट लताड़ व फटकार रहती है , सामान्य साधक या तांत्रिक जिसका तंत्र या मंत्र पर बहुत उच्च कोटि का नियंत्रण या बहुत उच्चतम कोटि की शक्ति या साधना या सिद्धि न हो वे फट मंत्रों का प्रयोग न करें , वरना विनाश या सर्वनाश सुनिश्च‍ित है ।
मंत्र का जप सप्तांग सहित करना चाहिये -
ऋष‍िश्छंदश्च बीजं च कीलकं शक्त‍िरेव च ।
अंगन्यासस्तथा ध्यानं मंत्रांगानां च सप्तकम ।।
वैदिक, पौराण‍िक, तांत्रिक, एवं सावर यह चार प्रकार के मंत्र जिसके सींग हैं, कादि , हादि सादि उपासना पद्धतियां जिसके तीन चरण पाद हैं, वैदिक , शैव, वैष्णव, दक्ष‍िण, वीर, वाम, कौल ये सात प्रकार के सात आचार ही जिसके सात हाथ हैं , जीवात्मा में प्रविष्ट यही तंत्र मंत्र है ।
सावर मंत्रों में सावधानी -
सावर मंत्र आसानी से और बहुत जल्दी असरकारक होते हैं , तथा सिद्ध भी शीघ्र होते हैं किंतु किंचित भी बिन्दुमात्र भी त्रुटिमात्र होने पर यह अति शीघ्र व तुरंत ही साधक का या उस प्रयोग करने वाले का या तांत्रिक का विनाश या सर्वनाश भी कर देते हैं ।  अत: सावर मंत्र जाप या प्रयोग में बहुत ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिये ।
किसी गृहस्थ के लिये या अन्य किसी तांत्रक के लिये वाम मार्गी पद्धति की साधना अति शीघ्र सिद्ध होने वाली व तुरंत फलदायी होती है किंतु तंत्र का विशेष नियम यह है कि , दक्ष‍िण मार्ग से यदि साधना कर रहे हों तो स्वयं की समर्पिता पतिव्रता पत्नी का प्रयोग करें , और यदि वाम मार्ग से साधना कर रहे हैं तो कुल नायिका का प्रयोग करें , गृहस्थ मनुष्य के लिये दक्ष‍िण मार्गी साधना सर्वोत्म है , और स्वयं की पत्नी का प्रयोग ही निर्दिष्ट है ।
अन्य प्रकार के प्रयोगों में श्री कुल एवं काली कुल दोनों ही कुल परंपराओं में यही विधान प्रावधान सम्यक है, किंतु कतिपय विशेष प्रयोगों में दासी का, या अन्य विशेष उल्लेख की गईं व वर्ण‍ित स्त्रीयों का ही प्रयोग किया जाना चाहिये ।
साधना में ''योगनी'' के रूप में और ''भैरवी'' के रूप में स्त्रीयों के प्रयोग किये जाने चाहिये , उच्च कोटि की बड़ी साधना पद्धतियों में रतात्सव पुरूष व स्त्री ( विपरीत रतात्सव सूरत में) केवल एक ही व्यक्त‍ि मंत्र जाप करता है  , जबकि अन्य उच्च कोटि की ही साधना पद्धतियों में दोनों को ही उसी स्थि‍ति में मंत्र जाप निरंतर करना होता है , किंतु इसकी अन्य सुस्थापित विधान व शर्तें हैं , तथा दोनों ही ऊर्ध्ववेत्ता एवं अंतिम मंत्र जाप तक स्थ‍िर रतात्सव एवं नि:स्ख्लि‍त रहने चाहिये , तदुपरांत नित्य या साधना अवधि पूरी होने तक रोजाना पूर्ण मंत्र जाप साधना उपरांत प्राप्त स्त्री रज व पुरूष वीर्य का मिश्रण वाम मार्ग में वर्ण‍ित विधि‍ एवं पद्धति द्वारा अनिवार्यत: उपयोग किया जाना चाहिये । अन्यथा साधना व्यर्थ व निष्फल जायेगी ।  दक्ष‍िणमार्ग में स्व पत्नी या स्व स्त्री या स्व पत्नीयों या स्व स्त्रीयों के संबंध में भी यही विधान तय है ।   बिना संपूर्ण विधान व प्रावधान जाने बगैर या उचित गुरू के मार्गदर्शन बगैर रतात्सव संबंधी साधना किसी को भी भूलकर नहीं करना चाहिये , क्योंकि इसमें अनेक क्रम , विध‍ि,  कलाओं व स्ववरूपों , धारण व ग्रहण करने योग्य या ग्राह्य अग्राह्य आदि अनेक उपचार उपासना के विविध सुनिश्च‍ित तरीके होते हैं , अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि या विनाश या सर्वनाश हो जाता है - नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''